नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Friday, February 24, 2017

खुशियाँ.....विमलेश शर्मा


#StatusOfStatus







खुशियाँ खोजनी हों तो शिकायतों को तह करके रख दीजिए। 
नीम कड़वे समय में बचे रहिए प्रभाविकता के नियम से देरतलक। रिसते दर्द में भी सहेजनी होगी भीतर की नमी ताकि बचा रहे आँख का पानी सदियों तक। 

मूर्त भी कहाँ सच हुआ करता है। बहुत है छलावे इस सतरंगी दुनिया में पर अगर बिछलता जादू देखना हो तो किसी निश्छल मुस्कराहट में देख लिजिए। किसी की खुशी का हेतु बन जाइए पर मज़ा तभी है जब यह बिन बताए हो। ऐसे ही तो जादू घटा करते हैं हमारे इर्द-गिर्द। कोई आकर सुनहले ख्वाबों को आँख दे जाता है तो कोई दे जाता है उन ख्वाबों को पूरा करने की दृष्टि। ये सब ही तो बन जाते हैं एक रहस्य, जादू या करिश्मा सभी के लिए!


ख्वाबों के जंगल में
कोई गिलहरी आंखों से
अधबुने जुगनू सरीखे पल
चुप से रख जाता है
रेतीले कोरों पर
मौन गहराई में
अकस्मात् हुई किसी
पदचाप की धमक से
कोई पा लेता है
 आब-ए- मुक़द्दस*
तो कहीं
कैलाशी शिव को
अपनी ही चौहद्दी में
जानते हो! कौतूहल!
मौन से टूटा शब्द है
माथे पर एकाएक उग आया तिलक है
वो अव्यक्त होकर भी ज़ाहिर है
किसी दरवेश के भीतर का शायर है
और कुछ नहीं
बस्स! किसी
अजानी चेतना को झकझोर कर
मोती सी सीपियों में यकायक
शफ़्फाक चमक पैदा होने का नाम है आश्चर्य!
और यूं मूर्त से अमूर्त हो जाने को
हम कह देते हैं अक्सर
नेमत!
जादू!
रहस्य!
या कि कोई पहेली अबूझ!
*आब-ए-मुक़द्दस=पवित्र जल
***********************************************************************************************************

0 comments:

Post a Comment

आपकी विशिष्ट टिप्पणी.....