नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


स्मृतिशेष

ज़िंदगी की अनगिन कहानियों में उतार-चढ़ाव भले ही अलग-अलग हों, पर कमोबेश हर कहानी दुहराती है खुद को।  वही दर्द, वही अभिलाषा, वही यश-अपयश, वही खुद को साबित करने की ज़द्दोज़हद, वही ख़्वाब, वही एहसास। कहानियों की चुनौतियाँ वही होती हैं, पर फिर भी कहानियाँ फिर-फिर कहीं जाती हैं तो बस इसलिए नहीं कि उसके पात्र कोई नयी चुनौती से भिड़ते हैं, पर इसलिए कि नए तरीके से भिड़ते हैं। ये नया तरीका ही उन्हें नायाब बनाता है। ये अलहदा अंदाज ही प्रेरणा भरता है लोगों में हर परिस्थिति से भिड़ने के लिए। वे थोड़े से लोग जो कहानियां छोड़ते हैं अपने पीछे, उनके दुनिया छोड़ देने के बाद भी उनकी रवानगी, दीवानगी, ज़िंदादिली ज़िंदा रहती है।  

स्मृतिशेष में नवोत्पल समय-समय पर उन्हें शब्दश्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने अपने पीछे कितनी ही कहानियाँ छोड़ दीं जो काल के कपाल पर अमिट तो है हीं, उनके मायने भी दिनोदिन बढ़ते जाते हैं।  


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