नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Friday, November 27, 2020

डॉ नितेश व्यास जी की कुछ कविताएँ

नितेश जी की कलम सिद्धहस्त है ऐसे बिम्बों को गढ़ने में, जिनसे होकर गुजरने में अनकहे से गुजरने सा महसूस होता है. विषय ऐसे चुनते हैं वे, जो रोजमर्रा के होते हुए भी जिनका वितान खासा व्यापक होता जाता है. उनकी कुछ कविताएँ नवोत्पल पर: 


1.शब्दों के पर

_______________

Source: Pinterest

शब्दों के पर किसने काटे

अर्थों को घर किसने बांटे

अब भी है कुछ शब्द गगन में

सूने घर में ज्यूं सन्नाटे।।


कुछ शब्दों ने मानी छोड़े

कुछ ने अर्थ नये हैं जोड़े

कुछ शब्दों की सीमाओं पर

अटकाती भाषाऐं रोड़े।।


कुछ शब्दों पर छियी उदासी

कुछ शब्दों के अर्थ है बासी

सदियों की दीमक से लिपटे

शब्द हैं कुछ पोथीगृहवासी।


शब्द हैं ख़ुद ही ख़ुद को खाते

शब्द शब्द के अर्थ को पीते

किसका आश्रय लेकर जीते

यहां तो सबके दिल हैं रीते।।


शब्द भी विस्थापन से त्रस्त हैं

उनकी आत्मा रोग ग्रस्त है

बाहर से तो सुन्दर दिखते

भीतर से पर अस्त-व्यस्त हैं।


कैसा गोरख धंधा है

यहां देखता अंधा है

आवाज़े सब ज़िन्दा है

शब्द मगर शर्मिन्दा है।।

______________________

2-परछाइयां

_____________

Source: Saatchi Art


परछाइयां छा जाती है

सूरज की पहली किरण के साथ

वे रहती हैं रात के अंधेरों में भी

एक दीये की ओट में


दिन भर दौड़ता हूं

उन परछाइयों के पीछे

तो नहीं *है*

न *होंगी* कभी


नापता हूं उनसे

अपनें कद को

हर पल


परछाइयां ही तो है......मृत्यु

मैं भागता हूं रोज़

जिसके पीछे


अन्थकार ही आश्रय मेरा

जहां नहीं होती मेरी भी परछाई

वही सत्य है

वहां

पर...........छूट जाता है-तो

कहां ठहरेगी छाया

वहीं से फूटता है प्रकाश

शुद्धतम प्रकाश।।

______________________

 3-कलमुंहे

___________

उजाले के लिए

हड़ताल पर बैठी भीड़ में से

कुछ लोग 

चुपके से भेज रहे पर्चियां

कि अभी अंधेरा रहे घनघोर

कुछ रोज़ ओर


शोर होगा

हम दबा देंगे


लीप देंगे 

अंधकार की कालिख से

उजाले की आस

क्या तुम्हें पता नहीं?

विश्वास करो


हम सदा यही करते आए हैं।

_____________________

4.हल-चल

_____________


मैनें देखा

उन्होंने भेज दिया

बहला-फुसला कर

किसानों को

युद्ध-भूमि में

हल ही थे जिनके हथियार

उन्होंने जोत दी युद्ध-भूमि

अलस्सुबह

और वह हो गयी

हरी-भरी,

देखा मैने

उन्होंने भेजा

धोखे से 

सैनिकों को खेत में

जिनके हाथों में थी बन्दूकें

वे कुछ ना कर सके

गाड़ दी थी बन्दूकें उसी खेत में

जहां आज

फूट पड़े हैं

फूल पीताभ।।

_____________________

 5-कच्चा अंधेरा

______________

उजाले

देते हैं मुझे

उपहार

अंधेरे का


जिसे मैं

इकट्ठा करता हूं रोज़

घर के इक कोने में

कि जब

लेनी हो मुझे नींद

भरी दुपहरी में

बना सकूं रात

हाथो-हाथ।।

___________________

 6.नश्वर-गन्ध

____________

नहा कर निकलता हूं

स्नानघर से

मैं वह नहीं रहता

Source: Amazon

जो गया था नहाने


रोज़ परत-दर-परत उतरता है मुझे 

पानी

छोटी सी नाली में बहकर

मैला-कुचला निकलता हूं

उन रास्तों पर

जो है संकरे-बदबूदार

पर मेरे ही बनाए हुए


सारी परतें खोल देगा

जिस दिन पानी

बहा देगा मुझे

उन गन्दे नालों में

उस दिन

स्नानघर से आएगी

*न होने* की महक।।

----------------------------------------------------------------------------------------------


डॉ नितेश व्यास

संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखनें वाले डॉ नितेश व्यास, वर्तमान में, जोधपुर,राजस्थान में संस्कृत विषय के सहायक आचार्य पद पर कार्यरत हैं ।मधुमती,किस्सा कोताही,हस्ताक्षर,रचनावली आदि पत्रिकाओं एवं पोषम पा,अथाई,संवाद सरोकर,काव्यमंच आदि ब्लाग्स् पर आपकी कविताऐं समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं।