नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Tuesday, March 6, 2018

शराबबंदी के समय में पुलिसिया वार्तालाप - आलोक प्रकाश


बिहार में शराबबंदी के माहौल में पुलिसिया संवाद कुछ इस तरह से हो रहा होगा.

नोट:ये वार्तालाप पूर्णत: काल्पनिक है


साभार:आज तक 




1)

‘बोतल हमारे संस्कार में नहीं है सर, मालूम नहीं व्यवहार में कैसे आ गया? हमारे संस्कार में तो भंग, चरस गांजा,मटका , इस तरह की प्राकृतिक पेय रहा है. अशोक, बुद्ध और जय प्रकाश की भूमि पर ये निर्लज्जता कैसे बर्दाश्त की जाती . अत: जो किया गया वो सही किया गया. हमारे पुरुखों ने कभी बोतल को हाथ नहीं लगाया. वो सादगी पसन्द थे. गोट-धनिया वाले मसाले में पकी मछली खाते थे, भंग की गोली खाकर घुलट जाते थे. लेकिन हम तंदूर में पके मुर्गे का मुलायम रान खाने के आदि हो गये हैं. मज़ा दो गुना हो जाता है अगर साथ में गला तर करने के लिए कुछ हो . पानी से प्यास बुझती है, गले की कुचकुची नहीं जाती है. खैर, हमारे लिए मसला द्र्व का नहीं, द्रव्य का था. हम शुरू में बहुत चिंतित थे बंदी से धंधे में बहुत मंदी आएगी ऐसा लगा था हमें . मुदा, महकमे में  बहुत लोगों की तो  लॉटरी लग गई.’

‘हरिओम,हरिओम!’
‘चंद्रकान्ता भी अब रोज एक पेग लेती है, उसके चेहरे पर निखार आ गया है. जब से उसने  रम चखा है , बीयर को मुँह नहीं लगती है. वैसे जनानियों का मदिरा पान हमें पसंद नहीं है, लेकिन कुतिया के पीने पर हमें आपत्ति नहीं है.’
‘साहब के घर की सदस्या है वो, कुतिया कैसे कह दिया उसे आपने?’
‘ग़लती हो गई, ज़ुबान फिसल गई सर!’
‘हरिओम,हरिओम!’
‘पहले हमको भभक लगता था, बहुत दूर रहते थे हम अमृत पान  से. मँगनी में मिलने लगा , तो थोडा- थोड़ा चखने लगे'
'और अब गटकने लगे- क्यों उस्ताद जी'
'हाँ, ठीके बोलते हैं आप सर'
'ई क्लेक़सन का क्या करना है ?’
‘खुदरा सब आपस में बाँट लेते हैं. ‘कार्टून वला साहब को भेजवा देते हैं, रंगीन बक्सा बड़ा साहब को’
‘और तीसरका का क्या करना है सर?’
‘उ विनोदवा के बगान  में बिगवा देते हैं और, कल रेड मरते हैं उसके यहाँ पर.’
‘महादेव,महादेव! अरे! एक बात तो आपको बताया ही नहीं, कल साहब के यहाँ एक ठो बड़ा प्राब्लम हो गया था. चंद्रकान्ता और रासिका बॉल से खेल रहीं थी, बॉलवा संडास में घुस गया. समस्या जटिल इसलिए हो गई क्योंकि साहब की बचिया को वही गोल वापस चाहिये था. हम तो  नयका , उससे भी नीम्मन लाकर देने को तैयार बैठे थे. अब हमारा लाठी कब काम आता. मैनें उसे अंदर डाला . मरदूद गोल, और अंदर चला गया. अब तो दिखना भी बंद हो गया था. हम घबरा गये. रासिका का दर्द हम से देखा न जा रहा था. वो रोए जा रही थी.’

‘अरे अपनी रहती तो चार-छ: झापर लगा कर शांत करवा देता आप.’
‘अरे पूरा सुनिए न सर! बॉल निकालने के मिशन को मैनें एक चुनौती की तरह लिया. अपना हाथ जगन्नाथ.’  हम कई बार हाथ घुसा कर ट्राइ किए- लेकिन साला निकल नहीं रहा था, एकदम अंदर चला गया था. आखिर में पूरा बाँह तलक घुसा  कर उसे निकाला .’
'हरी ओम, हरी ओम!.बाँह तलक, साबुन से अच्छी तरह धोया कि नहीं फिर.’
‘आप भी बहुत मज़े लेते हैं सर!’
‘अब आप कार्टून लेकर साहब के घर चले जाइए , रामप्रवेश घर गया है, अपनी बचिया की शादी के लिए. साहब को जुतवा पहनने वाला कोई नहीं है’
'इतना भी नहीं गिरे  हैं सर कि साहब को जुता पहनाएँ हम.'
‘अरे जब संडास का मुँह, अपने हाथों से खंगाल लिया तो जूते पहनाने से क्यों परहेज कर रहे हैं. साहब साफ सुथरे आदमी हैं, पैर भी साफ सुथरा ही रखते होंगे. अपने पवित्र हो चुके हाथ से ये शुभ काम भी कर ही दीजिए. आप भी न, तिल का ताड़ बनाते हैं.’
‘ये काम हम से नहीं होगा सर’
‘ठीक है फिर सरितिया को ही साहब का जुतवा सम्हालने का जिम्मा दे दीजिए. पूरनका साहब को तो वो मालिश भी देती थी. जुतवा, नहाना धोना सब उसी की ज़िम्मेदारी थी.’
‘शिव, शिव! -ई  साहब बड़े निम्मन हैं लड़की-औरत से दूर रहते हैं.’
‘लेकिन जल्दी कुछ व्यवस्था कीजिए . जुतवा पहने बिना साहब आफ़िस में कैसे बैठेंगे. अरे, काम कोई बड़ा छोटा नहीं होता है. ई त एक मौका है साहब को खुश करने का. हम तो खुदे उनको जूते पहना दें. लेकिन वो  हमारा बहुते लिहाज करते हैं - धाख करते हैं, हमरे हाथ से नहीं पहनेगें वो…. आप इसी चौकी पर खुश हैं या फिर बॉर्डर की पोस्टिंग चाहते हैं.’
‘चाहते हैं सर - बचवा को पढ़ने बंगलोर भेजना है, बचिया की शादी करनी है’
‘फिर तो जाईये और साहब को खुश कीजिए. सरितिया मिले तो बोलिएगा कभी हमें भी दर्शन दे . सुना है बहुत मज़ा आता है उसके मालिश में.’
 ' शिव-शिव, कैसी बातें करते हैं सर?'
'हरी ओम- हरी ओम'

2)

‘सर, सरितिया को बुलाएँ क्या? रामप्रवेश छुट्टी पर गया है नहाने-धोने, जूता-गुसलखाना में तकलीफ़ होती होगी !’
‘कल यू पी बोर्डर पर वाले दारोगा साहेब आए थे.मैनें सिर्फ़ उन्हें सूचित किया की रामप्रवेश नहीं है सो, गुसलखाना साफ करने वाला कोई नहीं है अभी.फिर क्या था ,जाने से पहले गुसलखाना साफ करते हुए गये. उनको कितना भी समझाया, नहीं माने -बड़े नेक आदमी हैं, अक्क्सर मिलने चले आते हैं. वैसे बड़े साहब से कह कर मैनें ही बॉर्डर पर की उनकी पोस्टिंग सस्ते में करवा दी है. इंपोर्टेड वाइन, एक बक्सा साथ लेकर आए थे.’
‘बॉर्डर पर तो सर अब टटोल कर बोतल महसूस करने की ट्रेनिंग दी जाती है- पिस्तौल महसूस करने की नहीं’
‘अब रामप्रेवेश की कमी सिर्फ़ जुते पहनने में हो रही है. महिला कर्मचारी से ज़ूते पकड़वाना अमर्यादित लगता है हमें.सरिता देवी चौका सम्हालती हैं हमारा, अन्नपूर्णा हैं वो. उन से इस तरह का काम नहीं लिया जा सकता है. और ,हाँ इज़्ज़त के साथ नाम लीजिय उनका, समझे न उस्ताद जी. वैसे मालिश भी अच्छा करती हैं वो, मेम साहब के मायका जाने पर उन्हें सेवा का अवसर दिया जाएगा.’
'सही बात है सर. लेकिन , आप खुद से जुतवा पहने ये जँचता नहीं है मुझे. कहाँ रखे हैं जूते आपके?'
‘मालूम नहीं रामप्रवेश कहाँ रखता है मेरे जूते . हाँ, एक और बात, रेंजर साहब ने फ़ोन किया था. कारपेंटर बिरजू से उनकी कुछ कहाँ सुनी हो गई थी, उसने रेंजर को थपरिया दिया.बिरजू को चौकी पर तलब करो कल’
'शिव-शिव! क्या जमाना आ गया?'- इतने प्रतिष्ठत आदमी  का गाल लाल कर देता है, एक दो कौड़ी का आदमी.कल लाल घर ले जाकर २१ की सलामी देता हूँ उसको- अक्ल ठिकाने आ जाएँगे’
‘२१ ज़्यादा हो गया,११ काफ़ी है और, सुनिए मुँह कान मत झारना उसका - सिर्फ़ भीतरी चोट, न मालूम कब बात मीडिया तक पहुँच जाए. '
‘चिंता मत कीजिए सर, हमारा स्टिक एक दम पर्फेक्ट है. एक ज़रा भी दाग नहीं होगा,  जब पछिया बहेगा तो कराह उठेगा वो.’
'पर्फेक्ट'
‘सर एक बक्सा और स्टोर में रखवा दिया है- कल के कलेकसन का . दारोगा साहब शाम को आएँगे ,लिफाफा लेकर.’
‘वो सब तो ठीक है लेकिन मेरे जूते कहाँ हैं . बिना जूते पहने तो मैं कहीं बाहर निकल नहीं सकता हूँ….. अच्छा इस महीने की छापामारी अब तक नहीं की हमने.’
'वो हम लोगों ने प्लान कर लिया है . कल विनोदवा की बारी है'
‘ठीक है, जूते आप ढूँढ के लाएँगे या मैं घर से बाहर नहीं निकलूँ आज?’
‘अभी ढूंढता हूँ सर’
 ‘जाने दीजिए मैं किसी तरह मैनेज करता हूँ. आप डॉक्टर घोष से मिल कर आइए , मुझे उनका अपॉइंटमेंट चाहिए . अच्छा हो अगर वो घर पर आकर मुझे देख लें.’
‘क्या हो गया है आपको सर, भले चंगे दिख रहे हैं आप?’
‘आप सिर्फ़ उनसे हमारी मुलाकात की व्यवस्था कीजिए. तकलीफ़ हम उनसे डिसकस कर लेंगे. और हाँ एक बक्सा, जीप में रख लीजिएगा, डाक्टर साहब को नज़राना देना होगा’

3)

'कॉमपाउंडर साहब, डाक्टर साहब हैं क्या, मैं पास वाली पुलिस चौकी का हवलदार हूँ ?'
'सर हैं न, किसे दिखाना है?'
'अरे, डी एस पी साहब को'
‘क्या हो गया है उन्हें ?’
'रोग, गुप्त है'
‘अच्छा!’
हम जीप लेकर आए हैं, १५-२० मिनट फ़ुर्सत होगा क्या डॉक्टर साहेब को ? हम वापस भी छोड़ जाएँगे.
'सर होम विजिट पर नहीं जाते हैं'
‘साहब का मामला है, इसलिय हम आए हैं, कुछ जुगाड़ कीजिए न’
'देखिए, दो घंटे बाद का अपोंटमेंट मिल सकता है, आप कहें तो नम्बर लगा दूं'
‘अरे वो डी एस पी साहब हैं, लाइन में कैसे लग सकते हैं.आप ऐसा कीजिए, सर से मेरी बात करवा दीजिए- सिर्फ़ दो मिनट’
‘ठीक है पेसेंट को निकलने दीजिए.’
'आप कुछ मत बोलिएगा, हम बात कर लेंगे उनसे'

4)
'सर डी एस पी साहब ने आपको सलाम भेजा है'
'उनको भी मेरा सलाम भेजा देना'
‘आप बात नहीं समझे सर, उन्होनें आपको याद किया है. आपको जल्दी से अपने घर बुलाया है’
‘मैं तो नहीं जानता उनको’
'मिलंने से ही जान-पहचान होती है न सर.'
‘क्या हो गया है उनको?’
‘कोई गुप्त रोग हो गया है’
‘यहाँ बहुत सारे पेसेंट हैं, मैं जाकर नहीं देख पाउँगा उनको. बोलिए उनको ,यहीं आ जाएँ , फटाफट बिना किसी नंबर का देख लेंगे उनको.- पुलिस वालों से वैसे भी हम फीस तो लेते नहीं हैं’

5)
‘सर मैं डी एस पी हूँ ,टाउन का'
‘क्या हो गया है आपको?’
‘सुबह से मीठा- मीठा दर्द हो रहा है. कल रात में तीखा दर्द हो रहा था, ठीक से हल्का भी नहीं हो पा रहा हूँ.
अच्छा, इसके लिए आपको घबराने की बात नहीं है. शायाद एसीडीटी से हुआ होगा. खुलस्त नहीं हो रहा है?’
‘नहीं, बहुत दम लगाना पड़ता है’
‘अच्छा ठीक है, मैं कॉन्सटीपेशन की दवा भी लिख देता हूँ’
‘सर, सोमरास पान करते हैं?’
'करता हूँ , लेकिन बंदी के कारण  बहुत मुशकिल हो गया है.'
'एक बक्सा लेते आए हैं हम आपके लिए. हमारा आदमी हरेक महीने एक कार्टून पहुँचा जाएगा'
‘एक रिक्वेस्ट है सर, हमारे बड़ा साहब का साला बीमार चल रहा है, उसको साहब के घर पर ज़ाकर थोड़ा देख लेते आप. आपका बहुत नाम सुना है, साहब ने.’
'कब चलना है?'
'पूछ के बताता हूँ सर'

6)

'उस्ताद दी! अब डायरेक्ट आफ़िस चलना  है'
'दवा नहीं लेना है सर?'

'अरे, हम भले चंगे हैं, हमें कुछ नहीं हुआ है. इनको, साहब के घर पर आने का न्योता देने आए थे हम.भले आदमी हैं, राज़ी हो गये.
‘राज़ी नहीं होते तो विनोदवा के बाद इनका ही नम्बर था’
‘क्या बात है उस्ताद जी आप तो बहुत समझदार हो गये हैं’

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